BHOPAL. बीजेपी की जीत के बाद सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि अब अगला सीएम कौन होगा। ये सस्पेंस अभी 10 दिसंबर तक कायम रहेगा। सीएम कौन होगा इसका खुलासा विधायक दल के बाद हो ही जाएगा। बीजेपी डिप्टी सीएम बनाएगी या नहीं। या जो दिग्गज सांसद जीत कर विधायक बने हैं, उनकी क्या भूमिका होगी। और, भी बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब का इंतजार है। चंद रोज में इन सवालों के जवाब भी साफ हो जाएंगे। बीजेपी की तरह ही कांग्रेस के पास भी अब चेहरे का संकट है। एक नहीं तीन चेहरे कांग्रेस को ऐसे तलाशने हैं जो बड़ी जिम्मेदारी संभाल सकें, लेकिन मुश्किल ये है कि कई बड़े चेहरे अप्रत्याशित रूप से चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में इस हार के बाद अगर कमलनाथ भी प्रदेश छोड़कर दिल्ली का रुख कर लेते हैं तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस का कर्ताधर्ता कौन होगा।
अभी तो सबकी नजरें कमलनाथ पर टिकी हैं
फिलहाल कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष की कमान खुद कमलनाथ के हाथ में हैं। इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष थे गोविंद सिंह, जो खुद लहार से चुनाव हार चुके हैं। सो, इस पद पर बने रहने का उनका कोई सवाल ही नहीं उठता। अभी तो सबकी नजरें कमलनाथ पर टिकी हैं। क्योंकि उनकी जिम्मेदारी का फैसला हमेशा से उनका ही रहा है। कांग्रेस के सीनियरमोस्ट नेताओं में से एक कमलनाथ खुद आलाकमान की फेहरिस्त के हिस्से में ही आते हैं। लिहाजा वो क्या करेंगे ये वही तय करेंगे। वो दिल्ली जाएंगे तो नेता प्रतिपक्ष के साथ-साथ पीसीसी चीफ के चेहरे की भी तलाश करनी होगी। अगर वो दिल्ली नहीं जाते हैं तो क्या खुद ही अध्यक्ष रहेंगे और नेता प्रतिपक्ष भी बन जाएंगे। या पहले कि तरह नेता प्रतिपक्ष का पद ही किसी और के सुपुर्द करेंगे।
कांग्रेस को किसी मुफीद चेहरे की दरकार है
सवाल तो कई हैं, लेकिन जवाब बहुत मुश्किल। क्योंकि एक लाइन से कांग्रेस के वो सभी चेहरे हार चुके हैं जिनकी वजनदारी पीसीसी से लेकर विधानसभा तक में थी। गोविंद सिंह के अलावा, सज्जन सिंह वर्मा, जीतू पटवारी, तरुण भानोट, केपी सिंह, लक्ष्मण सिंह, तरुण भनोट, सुखदेव पांसे, डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ, पीसी शर्मा, हुकुम सिंह कराड़ा, कमलेश्वर पटेल, लाखन सिंह यादव और कुणाल चौधरी चुनाव हार चुके हैं। ये वो नेता थे जो 15वीं विधानसभा में मुख्य भूमिका में थे, लेकिन इस बार इन सभी को हार का सामना करना पड़ा है। अब ये पीसीसी चीफ का पद तो संभाल सकते हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष या विधानसभा उपाध्यक्ष का पद नहीं संभाल सकते। इन पदों के लिए कांग्रेस को किसी मुफीद चेहरे की दरकार है। जो जानकार भी हो और विधायकों की छोटी सी गिनती के साथ विधानसभा में कांग्रेस का दम भी दिखा सके।
फिलहाल कांग्रेस के पास पांच नाम ऐसे हैं जिन पर भरोसा किया जा सकता है...
अजय सिंह
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह एक बार फिर इस पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। उन्होंने अपनी परंपरागत चुरहट विधानसभा सीट से बड़ी जीत हासिल की है। अजय सिंह पहले भी दो बार यह नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। ऐसे में इस बार भी वह इस पद के प्रबल दावेदार हैं, क्योंकि वर्तमान में कांग्रेस की तरफ से 16वीं विधानसभा में अजय सिंह ही सबसे सीनियर विधायक हैं।
रामनिवास रावत
ग्वालियर-चंबल अंचल से रामनिवास रावत ने भी विजयपुर विधानसभा सीट पर जोरदार वापसी की है। रावत भी नेता प्रतिपक्ष बनाए जा सकते हैं, वह ओबीसी वर्ग से आते हैं, ऐसे में कांग्रेस उन पर भी दांव लगा सकती है।
बाला बच्चन
बाला बच्चन राजपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीते हैं, आदिवासी वर्ग से आने के चलते उनका भी दावा मजबूत माना जा रहा है, खास बात यह है कि बाला बच्चन पहले भी कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष और उप नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
राजेन्द्र सिंह
राजेन्द्र सिंह विधानसभा उपाध्यक्ष रह चुके हैं, इन्हें संसदीय ज्ञान का अच्छा खासा अनुभव भी है। हालांकि, उनकी उनके भांजे अजय सिंह से पटरी नहीं बैठती है, ऐसे में अजय सिंह उनका अंदरखाने में विरोध कर सकते हैं।
उमंग सिंघार
उमंग सिंघार भी लगातार चौथी बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। तेज तर्रार सिंघार कांग्रेस की दिग्गज नेता रही स्वर्गीय जमुना देवी के भतीजे हैं, वह राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते हैं, ऐसे में सिंघार पर भी कांग्रेस दांव लगा सकती है। सिंघार के नाम पर कमलनाथ भी सहमति जता सकते हैं। उनके जरिए कांग्रेस आदिवासी तबके को तवज्जो दे सकती है।
जयवर्धन सिंह
अगर कांग्रेस युवा जोश को तरजीह देती है तो फिर जयवर्धन सिंह इस मामले में सबसे फिट बैठ सकते हैं। वह लगातार तीसरी बार राघौगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव जीते हैं। ऐसे में वह भी नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभा सकते हैं। कांग्रेस में इस बार कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है।
किसी हारे हुए प्रत्याशी पर कांग्रेस ये दांव खेलेगी ?
नेता प्रतिपक्ष और विधानसभा उपाध्यक्ष के नाम की तलाश के बाद पीसीसी चीफ की तलाश भी मुश्किल ही साबित होगी। अगर कमलनाथ ये पद छोड़ देते हैं तो। कमलनाथ के बाद पहला विकल्प ये है कि वो लोकसभा तक इस पद पर बने रहें, लेकिन उससे पहले ही उनका फैसला दिल्ली जाने का हो जाता है तो इस पद पर एक नए चेहरे की तलाश करनी होगी। गोविंद सिंह, जीतू पटवारी या अरूण यादव इसके दावेदार हो सकते हैं जो पहले भी अध्यक्ष रहे हैं। पर, क्या किसी हारे हुए प्रत्याशी पर कांग्रेस ये दांव खेलेगी या ये दांव खेलना फायदेमंद होगा।
कांग्रेस और बीजेपी दोनों को फिलहाल कई सवालों के जवाब खोजने हैं
बीजेपी की नजर कांग्रेस की एकमात्र लोकसभा सीट छिंदवाड़ा पर
इस विधानसभा चुनाव के बाद दोनों पार्टियों के सामने हालात अलग तरह के हैं। बीजेपी के पास दिग्गजों की फौज जमा हो चुकी है जिन्हें एडजस्ट करना है तो कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज घर बैठ चुके हैं। अब कुछ नए कुछ पुराने और कुछ अधपके चेहरों के बीच कांग्रेस को ऐसा चेहरा तलाशना है जो लोकसभा में पार्टी को थोड़ी मजबूती दे सके। वर्ना बीजेपी की रणनीति इस तरफ इशारा कर रही है कि अब उसकी नजर कांग्रेस की एकमात्र लोकसभा सीट छिंदवाड़ा की तरफ है। यानी कमलनाथ का ध्यान बंटना भी जायज है। अब आने वाले फैसले तय करेंगे कि लोकसभा में कांग्रेस का हाल क्या होगा।